घनसाली:- टिहरी जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बस नाम के स्वास्थ्य केंद्र बनकर रह गए हैं। यहां पर सुविधाओं का भारी अभाव है। अस्पताल में न तो चिकित्सक है और ना ही यहां पर अन्य सुविधाएं है। इस कारण इस अस्पतालों का लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा है। अस्पताल में सुविधा न होने के कारण लोगों को अस्पताल के चिकित्सकों द्वारा हर बार रैफर किया जाता है। वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि जब यहां पर सुविधाएं नहीं मिलनी है तो फिर ऐसे अस्पतालों का क्या फायदा।
आपको बता दें कि टिहरी जनपद के घनसाली विधानसभा का एक मात्र सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पीपीपी मोड (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) पर संचालित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र बेलेश्वर की स्थिति भी वर्तमान में दयनीय बनी हुई है। स्थानीय लोगों की ओर से अस्पताल में सुविधाओं में सुधार को लेकर कई बार आंदोलन भी किया गया। लेकिन स्वास्थ्य विभाग व संचालनकर्ता प्राइवेट एजेंसी के लिखित आश्वासन के बावजूद 4 वर्षो में अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधाओं में कोई सुधार नही हो पाया। जिससे अस्पताल मात्र रेफर सेंटर बनकर रह गया है। आलम यह है कि मरीज सरकारी अस्पताल की बजाय चमियाला व घनसाली के प्राइवेट क्लीनिकों पर अधिक विश्वास कर उनके पास इलाज के लिए जा रहे है। बीते 4 साल पहले सीएचसी बेलेश्वर को पीपीपी मोड़ पर इस आशा से सौंपा गया था कि लोगों को देहरादून व श्रीनगर जाने के बजाय यहीं पर अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकेंगीं। लेकिन लोगों की आशा के अनुरूप हिमालयन अस्पताल जौलीग्रांट स्वास्थ्य सेवाएं देने में सफेद हाथी साबित हो रहा है।
वहीं ताजा मामला कल देखने को मिला जो कि कल घनसाली क्षेत्र के छतियारा- खवाड़ा मोटरमार्ग पर एक मैक्स वाहन दुर्घटनाग्रस्त होने से घायलों को नजदीकी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बेलेश्वर लाया गया। जिसमे डॉक्टर ने एक को मृत घोषित कर दिया तथा दो अन्य गंभीर घायलों को अस्पताल द्वारा फर्स्ट ऐड देकर हायर सेंटर के लिए रेफर किया गया। आखिर कब तक इस प्रकार घायलों को रेफर किया जाता रहेगा। भगवान न करे घायलों के साथ हायर सेंटर जाने तक कोई अनहोनी हो जाए तो कौन जिम्मेदार रहेगा।
वही मौके पर जमा स्थानीय लोगों द्वारा जमकर हंगामा किया गया उन्होंने अस्पताल प्रबंधन को खूब खरी-खोटी सुनाई और घायलो के परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन को जौलीग्रांट अस्पताल को रेफर न करने के बजाए एम्स के लिए रेफर करने को कहा। वहाँ मौजूद लोगों ने कहा कि सरकार उक्त अस्पताल को पीपीपी मोड़ से जल्द हटाने की कार्यवाही करें अन्यथा आने वाले दिनों में क्षेत्रीय जनता को उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
आपको बता दें कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बेलेश्वर आए दिन चर्चा का विषय बना रहता है यहां जौलीग्रांट अस्पताल द्वारा तैनात स्टाफ कभी मरीजों के साथ तो कभी तीमारदारों के साथ अभद्रता एवं अकड़ कर बात करने की शिकायत आती रहती है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि उक्त अस्पताल को पीपीपी मोड में जाने के बाद राजनीति या सरकार में ऊंची पहुंच रखने वाले लोगों के लिए यह अस्पताल नौकरी का अड्डा बन कर रह गया है। जहां ऊंची पकड़ के चलते नियम कानून ताक पर रखकर शैक्षिक योग्यता दरकिनार कर अपनी चहेतों को नौकरी पर लगा दिया जाता है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या सरकार और क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि उक्त अस्पताल की व्यवस्था को सुधारने में कितना रुचि लेते हैं या ऐसे ही अस्पताल द्वारा हर छोटी दुर्घटना पर हायर सेंटर के लिए लोगों को रेफर करते रहेंगे या क्या हड़ताल और प्रदर्शन कर ही प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था और अस्पतालों की बदहाल स्थिति सुधरेगी?