घनसाली/टिहरी गढ़वाल:- टिहरी जिले में भिलंगना विकासखंड के गोनगढ़ पट्टी में एक गांव हैं देवल, यह गांव पौनाड़ा के पास पड़ता है। यहां स्थित है मां दुध्याडी देवी का मंदिर। जिसके बारे में कहा जाता है कि भगवती दुध्याड़ी अपने भक्तोँ को किसी भी प्रकार से दु:खी नहीं देख सकती। जो भी भक्त माता के पास अपनी फ़रियाद लेकर आता है वो अवश्य पूरी होती है।
माँ दुध्याड़ी देवी का 12 वर्षों बाद मेला (महाकुंभ), प्रत्येक 12 वर्षों में बाहर आती है माता की डोली
जगत जननी मां दुध्याड़ी देवी अपने मूल रूप में शक्ति का अवतार मानी जाती है, मां दुध्याड़ी देवी मेले को 21वीं सदी का प्रथम महाकुंभ माना जाता है। मां जगदंबा दुध्याड़ी देवी का मंदिर पौनाड़ा गांव के समीप देवल नामक स्थान पर सिलंगा वृक्ष के मूल में समुद्र तल से लगभग 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। जो तीनों और से सुंदर तथा ऊंची पर्वत मालाओं से घिरा हुआ है। मंदिर सभा व ग्राम वासियों के खेतों पर मां दुध्याड़ी देवी का मेला स्थल है जहां प्रत्येक 12 वर्षों के पश्चात परंपरा अनुसार मेले का आयोजन किया जाता है ।
माँ दुध्याड़ी देवी के मेले की मान्यता का प्रचलन
माँ दुध्याड़ी देवी का मेला एक परंपरागत ऐतिहासिक धार्मिक उत्सव है। जो देवी की परंपरा के अनुसार आदिकाल से हर 12 वर्षों के पश्चात मनाया जाता है। जो कि इस बार 12 वर्षों के बाद 07 दिसंबर 2022 से शुरु होने जा रहा है।
जानकारी के मुताबिक यह कथा प्रचलित है कि हर 12 वर्षों के पश्चात दीपावली बलिराज के दिन समस्त ग्रामवासी देवी की सहमति से 2 अवतारी-पुजारियों द्वारा देवी की डांडी बाहर निकाली जाती है। मंदिर स्थल पर उस समय का दृश्य देखने योग्य होता है जब मंदिर के चारों और देवी डांडी का दर्शन, आशीर्वाद लेने के लिए सैकड़ों की संख्या में भीड़ जुट जाती है। बलिराज के दिन लंबी प्रतीक्षा के पश्चात लगभग सायं 4:00 बजे अपनी पौराणिक वेशभूषा में देवी के दो अवतारी पुजारी माँ के मंदिर में प्रवेश करते हैं। लगभग 15-20 मिनट के पश्चात देवी के पुजारी अंदर की औपचारिकता पूर्ण करने के बाद कंपन मुद्रा में देवी अवतार लेती हुई डांडी के साथ बाहर आती हैं। देखते ही देखते डांडी स्पर्श करने के लिए भीड़ लग जाती है। सभी ग्रामवासी खुशी से नाचने लग जाते है।
इस बार 07 दिसंबर का दिन गोनगढ़ पट्टी के साथ-साथ टिहरी जनपद और घनसाली विधानसभा की समस्त जनता महिलाओं, पुरुष और युवा वर्ग व बच्चों के लिए एक एतिहासिक व स्मरणीय दिन होगा, जब देवी बाहर आती है। मंदिर से 01 किलोमीटर की दूरी पर सिलंगा वृक्ष के नीचे मां के दर्शन सभी भक्तजनों को प्राप्त होते हैं। हर व्यक्ति के मन में देवी के सुंदर रूप व विभिन्न आभूषणों से सुसज्जित डोली को देखने की लालसा लगी रहती है। चारों तरफ खुशहाली छा जाती है। खेत रमणीय बाजार के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं यह दृश्य देखने तथा मन को मोह लेने वाला होता है।