ब्रेकिंग:- आखिर “प्यारी पहाड़न” नाम मे क्या अश्लीलता है। आगे आकर “प्यारी पहाड़न” का साथ दें।

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देहरादून:- कोई 27 साल की युवती अपने पैरों पर खड़े होकर देहरादून जैसे शहर के कारगी चौक जैसे इलाके में रेस्टोरेंट खोलती है । वह इसका नाम रखती है – ‘ प्यारी पहाड़न रेस्ट्रो … और कुछ कथित क्रांतिकारी इस नाम को पहाड़ को बदनाम करने वाला बताकर टूट पड़ते हैं इस व्यावसायिक प्रतिष्ठान पर । जो एक रेस्टोरेंट ही नहीं , पहाड़ की एक विवश बाला के साहस हिम्मत का प्रतीक है जो बेरोजगारी के दौर में नई पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक है।

जरा सोचें  एक महिला जब पब्लिक प्लेस पर चाय मिठाई,पान की दुकान चलाती है तो उसे किन-किन नजरों से स्वयं को बचाना पड़ता है । पेट पालने के लिए उसे ग्राहकों के ताने सुनने पड़ते हैं  धुआं,पुलिस,मौसम,समय न जाने कितनी चुनौतियों से जूझना होता है । वह अपने साहस को रक्षा कवच बनाते हुए कमरतोड़ मेहनत करती है और हम इस बात पर अपनी राजनीति चमकाने के लिए कायरता वाली हरकत कर देते हैं कि रेस्टोरेंट का नाम सही नहीं है । वैसे नाम किसी की अपनी निजी संपत्ति होती है , उस पर कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता है । माना जा सकता है कि किसी प्रतिष्ठान के नाम से किसी समुदाय की भावना आहत नही होनी चाहिए , लेकिन ‘ प्यारी पहाड़न ‘ नाम से क्या भावना आहत हो रही है ?
मास्टर की पत्नी को मास्टरनी , पंडित की पत्नी पंडिताइन , ठाकुर की पत्नी ठकुराइन,नेपाल की महिला को नेपालन कहलाने में जब आपको आपत्ति नहीं तो पहाड़न नाम पर क्यों ? पहाड़न से पहले ‘ प्यारी ‘ शब्द लगा देने से भी क्या पहाड़ टूट गया ?

गढ़वाली गीत तो सुने हो न ? प्यारी सुवा , प्यारी बिमला , जाणू छौं प्यारी बिदेश , म्यरा मने कि प्यारी ….। इन संबोधनों – शब्दों पर आपको आपत्ति नहीं हुई ? ‘ प्यारी ‘ शब्द का आपने नकरात्मक अर्थ क्यों लगा दिया ?

क्या आप प्यारी बिटिया , प्यारी मां , प्यारी भुली , प्यारी दीदी जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते हो ? क्यों आपने कभी फुर्की बांद जैसे शब्दों पर आंदोलन नही किया ? क्या आपने कतिपय गढ़वाली गीतों के “ओंटड़ी करदी लप्प – लप्प ” जैसे बोलों पर आंदोलन किया ? क्या आपने रिश्तों में भ्रम उत्पन्न करने वाले जैसे गीतों  “नंदु मामा की स्याली कमला गोलू रंग तेरो” पर अपना विरोध जताया है ? प्रतिक्रिया से पहले शब्दों के अर्थ और उनकी व्याख्या समझो । नामकरण करने वाले की भावना और विवशता को आत्मसात करो । जो लड़की सुबह 6 बजे से रात के 11 बजे तक उस रेस्टोरेंट में कर्मचारियों और ग्राहकों के साथ माथापच्ची करती होगी , उसकी परिस्थितियां समझो । तुम्हें तो ऐसी वीरबाला का हौसला बढ़ाना चाहिए ।  देहरादून में सब्जी बेचने वाले पंचर लगाने वाले गन्ने के जूस वाले,दूध की डेयरी वाले , जूस कॉर्नर वाले कितने पहाड़ी हैं ? इनकी न के बराबर की संख्या आप जैसी सोच के कारण है । नाम पर सर मत पटको , काम पर भी ध्यान दो ।
राजनीति के लिए यह कोई मसला – मुद्दा नहीं है । उत्तराखंड राज्य में अपनी राजनीति चमकाने के लिए और भी कई मुद्दे हैं।

आप सभी लोगों से अपील है कि “प्यारी पहाड़न” नामक रेस्टोरेंट का साथ देने के लिए सभी आगे आए और एक बहन को स्वरोजगार हेतु अग्रसारित करें । जिससे और भी बहने प्रेरित होकर स्वरोजगार कर सकें । जो कि इन तुच्छ सोच रखने वाले लोगों की वजह से स्वरोजगार नहीं कर पाती है।