देहरादून:- उत्तराखंड निवासी 19 कुमाऊं रेजीमेंट के लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर 38 साल बाद भी सुरक्षित है। परिजनों ने बताया कि अभी तक उन्हें जो जानकारी मिली है उसके अनुसार शहीद की पार्थिव देह अब भी सुरक्षित अवस्था में है। सियाचिन में बर्फ में दबे रहने की वजह से शहीद की पार्थिव देह को नुकसान नहीं हुआ है।
शहीद चंद्रशेखर का जब शव मिला तो उनकी पहचान के लिए उनके हाथ में बंधे ब्रेसलेट का सहारा लिया गया। इसमें उनका बैच नंबर और अन्य जरूरी जानकारी दर्ज थीं। बैच नंबर से सैनिक के बारे में पूरी जानकारी मिल जाती है। इसके बाद उनके परिजनों को सूचना दी गई।
भारत-पाकिस्तान की झड़प के दौरान मई 1984 में सियाचिन में पेट्रोलिंग के लिए 20 सैनिकों की टुकड़ी भेजी गई थी। इसमें लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला भी शामिल थे। सभी सैनिक सियाचिन में ग्लेशियर टूटने की वजह से इसकी चपेट में आ गए थे। जिसके बाद किसी भी सैनिक के बचने की उम्मीद नहीं थी। भारत सरकार और सेना की ओर से सैनिकों को ढूंढने के लिए सर्च ऑपरेशन चलाया गया। इसमें 15 सैनिकों के शव मिल गए थे लेकिन पांच सैनिकों का पता नहीं चल सका था।
बता दें कि सियाचिन दुनिया के दुर्गम सैन्य स्थलों में से एक है। यह बहुत ऊंचाई पर स्थित है, जहां जीवित रहना एक सामान्य मनुष्य के बस की बात नहीं है। भारत के सैनिक आज भी वहां पर अपनी ड्यूटी निभाते हैं। 1984 में देश के सैनिकों ने इस जगह को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लिया था। इस अभियान में कई सैनिकों ने अपनी शहादत दी थी।
पथराई आंखों से 38 साल किया पति का इंतजार, पत्नी बोली- विश्वास था अंतिम दर्शन जरूर करूंगी
शहीद चंद्रशेखर हर्बोला की पत्नी शांति देवी ने अपने पति के पार्थिव शरीर का इंतजार 38 साल किया है। उन्हें इस बात का विश्वास था कि वह अपने पति के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन जरूर करेंगी। शांति देवी ने बताया कि जब उनके पति शहीद हुए तब उनकी (शांति देवी की) उम्र सिर्फ 28 साल थी। कम उम्र में ही उन्होंने जीवनसाथी को खो दिया और दोनों बेटियों को मां और पिता बनकर पाला। इस दौरान सेना की ओर से उन्हें पूरी मदद दी गई जिस वजह से परिवार के पालन पोषण में उन्हें काफी मदद मिली।
बेटियों के पास पिता से जुड़ी यादें याद नहीं हैं क्योंकि दोनों ही बेटियां बहुत छोटी थीं। बड़ी बेटी की उम्र उस समय सिर्फ साढे़ चार साल और छोटी बेटी की उम्र सिर्फ डेढ़ साल थी। शांति देवी ने बताया कि जब जनवरी 1984 में वह अंतिम बार घर आए थे तब वादा करके गए थे, इस बार जल्दी लौट आऊंगा। हालांकि उन्होंने परिवार के साथ किए वादे की जगह देश के साथ किए गए वादे को ज्यादा तरजीह दी।
शांति देवी ने बताया कि 38 साल तक हर रोज कहीं न कहीं ये बात जेहन में रहती थी कि कभी भी उनके पति को लेकर कोई खबर आ सकती है। आखिरकार आजादी के अमृत महोत्सव से ठीक एक दिन पहले मां भारती के सपूत के अंतिम बलिदान की सूचना आई।
लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला अंतिम बार परिवार में अपने छोटे भाई पूरन चंद्र हर्बोला से लेह लद्दाख में मिले थे। उनके भाई चार कुमाऊं रेजीमेंट में हैं। यह मुलाकात मार्च 1984 में हुई थी। इसके बाद परिवार के किसी भी व्यक्ति से उनकी बात भी नहीं हुई थी। इसके अलावा उनके दो और भाई हैं।