नई दिल्ली:- सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को उस समय अजीब स्थिति पैदा हो गई जब उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ जांच बंद कराने के लिए शिकायतकर्ता और राज्य सरकार दोनों एक मंच पर आ गए। इससे पहले राज्य सरकार ने जांच के खिलाफ अपनी एसएलपी को वापस लेने की अर्जी दी थी। जस्टिस एमआर शाह और एमएम सुंदरेश राज्य सरकार और शिकायतकर्ता की अर्जियां देखकर हंसने लगे और पूछा क्या हो गया अब क्या समीकरण बदल गए हैं।
शिकायतकर्ता उमेश कुमार शर्मा के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि वह कोई जांच नहीं चाहते। आपस में बातचीत करके मामले को सुलझाना चाहते हैं। अदालत इसके लिए उन्हें कुछ समय दे। कोर्ट ने कहा कि यह आपका आपसी मामला जैसा बन गया है जिसमें आप समझौता करना चाहते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की ओर से वरिष्ठ वकील एआर नाडकर्णी ने कहा कि उनके मुवक्किल अब मुख्यमंत्री नहीं, लेकिन शिकायतकर्ता अब विधायक बन गए हैं। वहीं, राज्य सरकार के वकील ने कहा कि जांच के आदेश के खिलाफ दायर एसएलपी को अब वह वापस नहीं लेना चाहते। हालांकि, सरकार ने पिछले महीने इस एसएलपी को वापस लेने की अर्जी दी थी। इस पर कोर्ट मामले को दिसंबर तक स्थगित करना चाह रहा था लेकिन सिब्बल ने कहा कि यह समय कम होगा। कम से कम जनवरी तक का समय दिया जाए। इस पर कोर्ट ने मामले को चार जनवरी के लिए स्थगित कर दिया।
हाईकोर्ट ने 27 अक्तूबर 2020 को पूर्व सीएम के खिलाफ सीबीआई जांच का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट आ गई थी जिस पर कोर्ट ने नवंबर में आदेश पर रोक लगाकर उमेश कुमार शर्मा को नोटिस जारी कर दिया था।
क्या था मामला
आपको बता दें कि उमेश कुमार शर्मा ने त्रिवेंद्र सिंह रावत पर आरोप लगाया था कि झारखंड का प्रभारी रहते उन्होंने झारखंड गो सेवा आयोग के अध्यक्ष पद पर एक व्यक्ति की नियुक्ति कराने के लिए उससे रिश्वत ली थी। ये रकम त्रिवेंद्र सिंह के रिश्तेदारों के खाते में ट्रांसफर कराई गई थी। इस आरोप के बाद उमेश कुमार शर्मा के खिलाफ उत्तराखंड सरकार ने राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करा दिया था जिसके खिलाफ उमेश कुमार ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
उमेश कुमार ने त्रिवेंद्र सिंह पर लगे आरोप को गंभीर बताते हुए इसकी जांच सीबीआई से कराने का आदेश देने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने उमेश कुमार शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबीआई जांच का आदेश दे दिया था। हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ त्रिवेंद्र सिंह और उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।